भेदभाव क्यों # शॉर्ट स्टोरी चैलेंज #समाजिक
शीर्षक :- भेदभाव क्यों
नन्दनी उत्तर प्रदेश के एक बहुत छोटे से गाँव में रहती थी। इस गाँव के आसपास बहुत से शहर बसे थे।पर गाँव की स्थिति बहुत ही खराब थी। खासतौर से औरतों और लड़कियों की।
गाँव में लड़कियों के लिए केवल आठवीं कक्षा तक का ही एक सरकारी स्कूल था। उसके बाद उन्हें दस किलोमीटर दूर जाना पड़ता था आगे की पढ़ाई के लिए। इसलिए अधिकतर लड़कियां केवल आठवीं तक ही पढ़ पाती थीं। क्योंकि कोई भी माता पिता अपनी बच्ची को दस किलोमीटर दूर भेजने को तैयार नहीं होते थे।
लड़कों के लिए वहां बारहवीं तक के स्कूल उपलब्ध थे। जिससे सरकार की मंशा भी साफ स्पष्ट होती थी कि वह भी लड़कियों को आगे पढ़ाने- लिखाने में दिलचस्पी नहीं लेना चाहती थी।
अक्सर गाँव के लड़के लड़कियों का मज़ाक उड़ाते थे। उन्हें कोल्हू का बैल कहकर बुलाते थे। बेचारी लड़कियां चुपचाप यह सब सुनती रहती थीं। नन्दनी का दिमाग गर्म हो जाता था यह सब सुनकर।
"देखना, एक दिन इन सबको दिखा दूंगी कि कोल्हू का बैल क्या कर सकता है।" नन्दनी ने अपनी सहेलियों से कहा।
"छोड़ ना नन्दू, हमारी किस्मत में यही लिखा है। तू इन लड़कों के मुंह मत लगा कर। कल को कुछ ऊंच नीच हो गई तो इन लड़कों को कोई कुछ नहीं कहेगा, इल्ज़ाम हम पर ही आएगा।" नन्दनी की सहेली ने उसे समझाते हुए कहा।
कुछ माह बाद 2020 में कोरोनावायरस की महामारी घोषित हो गई। देखते ही देखते, शहरों के साथ - साथ यह बिमारी गाँव में भी फैलने लगी। नन्दनी का गांँव भी इससे अछूता नहीं रहा। गाँव के मर्द इस महामारी की चपेट में आ चुके। पर उस गाँव की तरफ किसी का ध्यान नहीं था। सरकार शहरों को बचाने में लगी हुई थी।
गाँव की तरफ देखने की फुर्सत कहां थी।
हर रोज़ गाँव में मरीज़ों की संख्या बढ़ रही थी। छोटे-छोटे घरों में किसी को अलग रखने की सुविधा कहां से लाते। गांव के हालात दिन पर दिन खराब होते जा रहे थे।
"बस अब और नहीं। ऐसे हम अपने लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकते। सरकार जब तक कुछ करेगी तब तक आधा गांव इस महामारी की चपेट में आ चुका होगा।" नन्दनी ने कहा।
"पर हम कर ही क्या कर सकते हैं?" सुमन बोली।
"ये जंग अब हमें लड़नी है। अपनों को बचाने की जंग। तुम सब मेरे साथ हो तो हाथ बढ़ाओ।" नन्दनी ने कमर कसते हुए कहा।
"हम सब साथ हैं" सबने एक साथ बोला।
सबसे पहले नन्दनी और उसकी सहेलियों ने मिलकर गाँव के अंदर आने वाले तीनों रास्तों को बंद कर दिया। उसके बाद घास-फूस , लकड़ियां और रस्सियों के इस्तेमाल से दो- तीन झोंपड़ी बनाई। फिर घर-घर जाकर पुराने गद्दों का इंतज़ाम किया। उन्हें उन झोंपड़ियों में बिछा कर हर घर में इस वायरस से बिमार पड़े लोगों को वहां भेजा। जिससे उनकी बिमारी से उनके परिवार वाले चपेट में ना आएं।
गांँव में डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं थे। तो नन्दनी ने इंटरनेट के ज़रिए इस बिमारी के आयुर्वेदिक इलाज ढूंढे। गाँव की औरतों के साथ मिलकर उनको बनाया।
मरीजों की देखभाल के लिए सभी लड़कियों ने अपने लिए स्वयं मास्क और दस्ताने तैयार किए। मरीजों की देखभाल करने के लिए सबने सुबह शाम की ड्यूटी निर्धारित की।
दवाओं का अभाव था, पर सही खान-पान और उचित देखभाल से सब ठीक होने लगे। गांँव में किसी के ना आने से वायरस का फैलना भी रुक गया।
धीरे-धीरे सभी गाँव वासी तन्दरूनन्दनी उत्तर प्रदेश के एक बहुत छोटे से गाँव में रहती थी। इस गाँव के आसपास बहुत से शहर बसे थे।पर गाँव की स्थिति बहुत ही खराब थी। खासतौर से औरतों और लड़कियों की।
गाँव में लड़कियों के लिए केवल आठवीं कक्षा तक का ही एक सरकारी स्कूल था। उसके बाद उन्हें दस किलोमीटर दूर जाना पड़ता था आगे की पढ़ाई के लिए। इसलिए अधिकतर लड़कियां केवल आठवीं तक ही पढ़ पाती थीं। क्योंकि कोई भी माता पिता अपनी बच्ची को दस किलोमीटर दूर भेजने को तैयार नहीं होते थे।
लड़कों के लिए वहां बारहवीं तक के स्कूल उपलब्ध थे। जिससे सरकार की मंशा भी साफ स्पष्ट होती थी कि वह भी लड़कियों को आगे पढ़ाने- लिखाने में दिलचस्पी नहीं लेना चाहती थी।
अक्सर गाँव के लड़के लड़कियों का मज़ाक उड़ाते थे। उन्हें कोल्हू का बैल कहकर बुलाते थे। बेचारी लड़कियां चुपचाप यह सब सुनती रहती थीं। नन्दनी का दिमाग गर्म हो जाता था यह सब सुनकर।
"देखना, एक दिन इन सबको दिखा दूंगी कि कोल्हू का बैल क्या कर सकता है।" नन्दनी ने अपनी सहेलियों से कहा।
"छोड़ ना नन्दू, हमारी किस्मत में यही लिखा है। तू इन लड़कों के मुंह मत लगा कर। कल को कुछ ऊंच नीच हो गई तो इन लड़कों को कोई कुछ नहीं कहेगा, इल्ज़ाम हम पर ही आएगा।" नन्दनी की सहेली ने उसे समझाते हुए कहा।
कुछ माह बाद 2020 में कोरोनावायरस की महामारी घोषित हो गई। देखते ही देखते, शहरों के साथ - साथ यह बिमारी गाँव में भी फैलने लगी। नन्दनी का गांँव भी इससे अछूता नहीं रहा। गाँव के मर्द इस महामारी की चपेट में आ चुके। पर उस गाँव की तरफ किसी का ध्यान नहीं था। सरकार शहरों को बचाने में लगी हुई थी।
गाँव की तरफ देखने की फुर्सत कहां थी।
हर रोज़ गाँव में मरीज़ों की संख्या बढ़ रही थी। छोटे-छोटे घरों में किसी को अलग रखने की सुविधा कहां से लाते। गांव के हालात दिन पर दिन खराब होते जा रहे थे।
"बस अब और नहीं। ऐसे हम अपने लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकते। सरकार जब तक कुछ करेगी तब तक आधा गांव इस महामारी की चपेट में आ चुका होगा।" नन्दनी ने कहा।
"पर हम कर ही क्या कर सकते हैं?" सुमन बोली।
"ये जंग अब हमें लड़नी है। अपनों को बचाने की जंग। तुम सब मेरे साथ हो तो हाथ बढ़ाओ।" नन्दनी ने कमर कसते हुए कहा।
"हम सब साथ हैं" सबने एक साथ बोला।
सबसे पहले नन्दनी और उसकी सहेलियों ने मिलकर गाँव के अंदर आने वाले तीनों रास्तों को बंद कर दिया। उसके बाद घास-फूस , लकड़ियां और रस्सियों के इस्तेमाल से दो- तीन झोंपड़ी बनाई। फिर घर-घर जाकर पुराने गद्दों का इंतज़ाम किया। उन्हें उन झोंपड़ियों में बिछा कर हर घर में इस वायरस से बिमार पड़े लोगों को वहां भेजा। जिससे उनकी बिमारी से उनके परिवार वाले चपेट में ना आएं।
गांँव में डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं थे। तो नन्दनी ने इंटरनेट के ज़रिए इस बिमारी के आयुर्वेदिक इलाज ढूंढे। गाँव की औरतों के साथ मिलकर उनको बनाया।
मरीजों की देखभाल के लिए सभी लड़कियों ने अपने लिए स्वयं मास्क और दस्ताने तैयार किए। मरीजों की देखभाल करने के लिए सबने सुबह शाम की ड्यूटी निर्धारित की।
दवाओं का अभाव था, पर सही खान-पान और उचित देखभाल से सब ठीक होने लगे। गांँव में किसी के ना आने से वायरस का फैलना भी रुक गया।
धीरे-धीरे सभी गाँव वासी तन्दरूस्त होने लगे। कुछ बुज़ुर्गों और महिलाओं की मौत हुई। क्योंकि समय पर ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतज़ाम नहीं था गाँव में। इसका मलाल नन्दनी और उसकी सभी सहेलियों को था। पर उनके बस में जितना था उन्होंने किया और अपने गांव को कुछ महीनों बाद करोना मुक्त कर दिया।
आज गाँव के सरपंच ने सभी लड़कियों को उनकी समझदारी और बहादुरी से महामारी का सामना करने, और सभी गाँववसियों को इस महामारी की चपेट से बाहर निकालने के लिए पुरस्कार देने का आयोजन किया है।
पुरस्कार स्वीकार करने जब नन्दनी मंच पर पहुंची तो उसने सरपंच से कहा,"सरपंच जी, यदि आप हमें पुरस्कृत करना ही चाहते हैं तो हमारे लिए गाँव में बारहवीं तक के विद्यालय खुलवा दीजिए। हम सब लड़कियां आपकी बहुत आभारी रहेंगी। हमें भी लड़कों की तरह पढ़ने का मौका दीजिए जिससे हम भी अपनी पहचान बना सकें।"
सरपंच जी ने नन्दनी से वादा किया और उसे पूरा भी किया। आज गाँव में दो कन्या विद्यालय हैं जिसे धीरे -धीरे पक्का बनाया जा रहा है। गाँव की हर लड़की अब साक्षरता और उच्च शिक्षा की तरफ बढ़ रही है।
हमारे समाज में जो सोच सदियों से चली आ रही है कि लड़कियों को ज़्यादा पढ़ा लिखा कर क्या करना है, उससे अब हमें निकलना होगा। यह भी एक सामाजिक बुराई है और इससे हर नागरिक को मुक्त होना आवश्यक है।
🙏
आस्था सिंघल
Shnaya
02-Jun-2022 05:01 PM
👏👌
Reply
Seema Priyadarshini sahay
29-Apr-2022 08:53 PM
कहानी बेहतरीन है लेकिन आप एक बार पढ़कर एडिट कर लें।कुछ भाग रिपीट हो गए हैं
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Niraj Pandey
29-Apr-2022 12:08 AM
बहुत ही जबरदस्त👌👌
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Astha Singhal
29-Apr-2022 01:26 PM
आभार 🙏
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